मेरा आँगन

मेरा आँगन

Friday, May 15, 2009

मदन का भाई नन्दू


कमल चोपड़ा

मदन बैलगाड़ी चलाता था। क्योंकि उसके पास नन्दू नाम का एक ही बैल था इसलिए उसने अपनी गाड़ी को थोड़ा छोटा और इस तरीके का बनवा लिया था ताकि उसे खींचने में नन्दू को कोई परेशानी न हो।
उस दिन मदन अपनी बैलगाड़ी से सेठ रामरतन के अनाज के कुछ बोरे सूर्यगढ़ की अनाज मंडी पहुंचाने जा रहा था। आधे रास्ते पहुँचकर उस के बैल नन्दू की तबीयत खराब हो गई। मदन अपने बैल नन्दू को अपने भाई जैसा मानता था। नन्दू को गाड़ी खींचने में बहुत मुश्किल हो रही थी। उसके पैर लड़खड़ा रहे थे। मदन ने उसे रुकने के लिए कहा लेकिन नन्दू किसी तरह धीरे–धीरे चलने की कोशिश करता रहा।
नन्दू को लड़खड़ाता देख मदन ने गुस्से में उसे रुकने के लिए कहा। नन्दू रुक गया।
गाड़ी से उतरकर मदन ने नन्दू को छू कर देखा – अरे तुझे तो बुखार है? और तू है कि .......? मदन ने उसे गाड़ी से खोला और नजदीक के एक पेड़ के नीचे आराम करने को कहा। नजदीक ही एक गाँव था। मदन गाँव से नन्दू के लिये चारा और बाल्टी में पानी ले आया। नन्दू ने थोड़ा सा पानी पिया। थोड़ा सा चारा खाया फिर छोड़ दिया। मदन ने उसे हाथ से सहलाते हुए उसकी हिम्मत बढ़ाई – अरे, कुछ खायेगा पिएगा नहीं तो ठीक कैसे होगा? इतना बलवान हो के बुजदिलों की तरह हिम्मत छोड़ रहा है? हिम्मत रख भाई......
नन्दू बोलता नहीं था लेकिन वह मदन की सब बात समझता था। मदन भी इशारों–इशारों में नन्दू की हर बात समझ लेता था। नन्दू ने आँखों के इशारे से कहा – मुझे अपनी चिन्ता नहीं। मुझे सेठ रामरतन के माल को जल्द से जल्द मंडी पहुँचाने की चिंता है.....
– कोई बात नहीं! जान है तो जहान है! सेठ क्या कर लेगा? ज्यादा से ज्यादा हमारे भाड़े के पैसे काट लेगा या नहीं देगा। देखा जाएगा। तुझे कुछ हो गया तो? तू चिन्ता न कर मैं अभी तेरी दवा–दारू का कुछ प्रबंध करता हूँ।
थोड़ी देर बाद मदन पास के गाँव से एक वैद्य को बुला कर ले आया। वैद्य ने नन्दू को चैक किया फिर अपने झोले से निकाल कर कुछ जड़ी–बूटियाँ नन्दू को खिलाई और पचास रूपये लेकर चलता बना। रात हो गई थी दोनों पेड़ के नीचे लेट गये।
सुबह तक नन्दू की हालत और खराब हो गई थी। उससे उठकर खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था। वहाँ से गुजरने वाले लोग कुछ पल रुकते। नन्दू को देखते और कहते – इसकी हालत तो बहुत खराब है। इसका तो बचना मुश्किल है।
मदन की चिंता बढ़ती जा रही थी। वहाँ से गुजरने वाले एक अन्य व्यक्ति ने मदन को सलाह दी – देसी इलाज -विलाज को छोड़ो। किसी पढ़े–लिखे जानवरों के डाक्टर को दिखाओ। जानवरों के डाक्टर का पता लगाकर मदन उसे बुलाकर ले आया। डाक्टर ने नन्दू का चैक अप किया और कहा – इसे अंतड़ियों का इंफेक्शन हो गया है। जैसे इंसानों के होता है न? ऐसे ही जानवरों को भी इन्फैक्शन हो जाता है। इसे पाँच दिन तक रोज इंजेक्शन लगाने पड़ेंगे। कुछ दव।इयाँ भी देनी पड़ेंगी। मैं लिख देता हूँ। यहाँ से डेढ़ एक मील दूर अगले गाँव में दवाइयों की दुकान है वहाँ से मिल जायेंगी। सात–आठ सौ रुपये की पड़ेंगीं। सौ रुपया रोज का मेरी फीस होगी। इलाज करवाना है तो सोच लो.....?
– डाक्टर साहब, नन्दू ठीक तो हो जायेगा न?
डाक्टर साहब ने पहले मदन की ओर देखा फिर नन्दू की ओर देखा। दोनों की आँखों में आँसू थे। डाक्टर साहब धीरे से बोले – ठीक क्यों नहीं होगा। कोशिश करना हमारा कर्तव्य है। बाकी तो ऊपर वाले की मर्जी पर है। फिलहाल मैं कुछ दवाइयाँ अपने पास से दे देता हूँ। तुम शाम तक मेरी लिखी दवाइयाँ और इंजेक्शन ले आओ। मैं शाम को फिर आऊँगा। कहकर डाक्टर साहब अपनी फीस लेकर चले गये।
मदन नन्दू के पास गया तो नन्दू सिर हिला हिलाकर पूछने लगा – क्यों मेरे लिए इतना परेशान हो रहे हो? मरने दो मुझे। किराये की बैलगाड़ी लेकर माल मंडी में पहुँचा दो। मुझे यहाँ पड़ा रहने दो। वापसी में देख लेना। मैं ठीक हो गया तो ठीक वर्ना.......।
– मैं तुम्हें तुम्हारे हाल पर छोड़कर कैसे जा सकता हूँ? बीमार नहीं होते क्या लोग? इलाज से ठीक नहीं होते क्या?
– इतने पैसे कहाँ से लाओगे? इतने तो हम लोग लेकर भी नहीं चले।
– रास्ते में खाने–नहाने के लिए हम जो बाल्टी–बरतन अपने साथ लेकर चलते हैं न, मैं उन्हें बेच दूँगा। तू चिंता मत कर.....
– मेरे लिए इतना....
– क्या इतना? अपनी बार भूल गया? जब मेरे पिता हमारे सिर पर कुछ कर्ज छोड़कर गुजर गये थे और लोगों ने हमारे खेतों पर कब्जा कर लिया था। तब मैं बीमार चल रहा था। कुछ गुण्डे–लठैत हमारी झुग्गी पर भी कब्जा करने आये थे लेकिन तूने जमकर उनका मुकाबला किया था। उनकी लाठियाँ खाईं लेकिन उन्हें झुग्गी पर कब्जा नहीं करने दिया। मेरी जान बचाई। सींग मार- मारकर खदेड़ दिया था तूने? और आज मैं तुझे यों ही छोड़ दूँ? मुसीबतों में हम दोनों साथ रहे हैं और आगे भी रहेंगे! सुन लिया न!
दोनों की आँखों से आँसू बह रहे थे। तभी वहीं आस–पास मँडरा रहे एक आदमी ने मदन को पास बुलाया और कहा – इस बैल के लिए क्यों इतना परेशान हो रहे हो? आखिर ये है तो जानवर ही?
मदन को गुस्सा आ गया – इंसान भी तो जानवर ही है! बल्कि जानवर तो इंसान को अपना दोस्त समझते हैं और इंसान ...... पशुओं का फायदा उठाता है और बाद में उन्हें मार–काटकर के खा जाता है। इंसान जैसा निर्दय और खुदगर्ज तो कोई जानवर होगा ही नहीं!
वह आदमी हँसते हुए बोला – अरे छोड़ो – छोड़ो ये उपदेश की बातें....! और जरा बु​द्धि से काम लो..... इस बीमार बैल को मुझे एक हजार रुपयों में बेच दो और जो पैसे तुम इसके इलाज में खर्च कर रहे हो वे बच जायेंगे। मेरे दिये एक हजार रुपये और इलाज के बचे पैसों को मिलाकर मैं तुम्हें नया बैल खरीदवा देता हूँ। अपना मजे से जहाँ जाना हो जाओ।
मदन ने हैरानी से पूछा – तुम इस बीमार बैल का क्या करोगे? उस आदमी ने हँसते हुए कहा – इसे किसी कसाई को काटने के लिये दे दूँगा और क्या......।
सुनते ही मदन भड़क उठा। उस आदमी को मारने के लिए डंडा लेने अपनी बैलगाड़ी की ओर भागा। वह आदमी मदन को गुस्से में बेकाबू हुआ देखकर भाग खड़ा हुआ। वर्ना मदन इतने गुस्से में था कि उसे जान से ही मार डालता।
अगले पांच दिन तक मदन वहीं खुले में पड़ा रहा और नन्दू की सेवा करता रहा। कभी उसे दवाई खिलाता कभी चारा खिलाता। कभी उसे नहलाता। डाक्टर आता इंजेक्शन लगाता। छठे दिन नन्दू उठकर खड़ा हो गया। नन्दू के स्वस्थ हो जाने पर मदन की खुशी का ठिकाना नहीं था।
स्वस्थ होते ही नन्दू ने मदन को इशारे से कहा – अब जल्दी से चलो यहाँ से चलकर सेठ राम रतन का माल मंडी में पहुँचा दें।
मदन ने हँसते हुए कहा – सेठ रामरतन तो हमें ढूँढ रहा होगा। वो सोच रहा होगा हम दोनों उसका माल लेकर भाग गये हैं!
ज्यों ही मदन अपनी बैलगाड़ी लेकर मंडी की ओर रवाना होने लगा उसने देखा सामने से गाँव के दो तीन प्रतिष्ठित व्यक्ति चले आ रहे हैं। एक आदमी ने आगे आकर कहा – मैं इस गाँव का प्रधान हूं। मैं तुम्हारे साथ अपनी इकलौती लड़की का रिश्ता करना चाहता हूँ। मुझे तुम्हारे जैसे लड़के की ही तलाश थी। तुम्हारे गाँव अपना आदमी भेजकर मैंने तुम्हारे बारे में सब पता लगा लिया है। तुम मेहनती और ईमानदार आदमी हो। जो आदमी पशुओं से इतना प्यार कर सकता है वह मेरी बेटी को कभी धोखा नहीं देगा। तुम मंडी जा रहे हो जाओ। हम एक माह बाद खुद तुम्हारे गाँव रिश्ता लेकर आएँगे।
दोनों खुशी–खुशी मंडी की ओर चल दिये। मंडी पहुँचे तो सेठ राम रतन जैसे उनके स्वागत में ही खड़ा था। वे तो सोच रहे थे कि सेठ उन्हें देखते ही बिगड़ उठेगा और उन्हें बुरा–भला कहेगा लेकिन सेठ ने हँसते हुए कहा – तुम लोग एक सप्ताह देर से पहुँचे। अच्छा किया। तुम लोग पहले पहुँच जाते तो मेरा माल सस्ते में बिक जाता। इस बीच इधर अनाज के भाव बहुत बढ़ गये हैं। अब मैं अपना माल ऊँचे दामों पर बेचूँगा। मुझे दुगुने का फायदा हो गया है। मैं तुम्हें भी इनाम के रूप में दोगुना किराया दूँगा।
मदन ने नन्दू की ओर देखा। दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं था।

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कमल चोपड़ा
1600/114, त्रिनगर,
दिल्ली – 110035.

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