मेरा आँगन

मेरा आँगन

Sunday, December 20, 2009

पानी



रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
मैं पानी हूँ मैं जीवन हूँ
मुझसे सबका नाता ।
मैं गंगा हूँ , मैं यमुना हूँ
तीरथ भी बन जाता ।
मैं हूँ निर्मल पर दोष सभी ,
औरों के हर लेता ।
कल तक दोष तुम्हारे थे जो ,
अपने में भर लेता ।
पर सोचो तो मैं यों कब तक ,
कचरा भरता जाऊँ !
मुझको जीवन भी कहते हैं ,
मैं कैसे मरता जाऊँ !
गन्दा लहू बहा अपने में
कब तक चल पाता तन
मैं धरती की सुन्दरता हूँ ,
हर प्राणी की धड़कन ।
मेरी निर्मलता से होगी,
धरती पर हरियाली ।
फसलों में यौवन महकेगा,
हर आँगन दीवाली ।
नदियाँ ,झरने ,ताल-तलैया ,
कुआँ हो या कि सागर ।
रूप सभी ये मेरे ही हैं,
एक बूँद या गागर ।
हर पौधे की हर पत्ती की
प्यास बुझाऊँ जीभर ।
पर जीना दूभर होगा ये,
दूषित हो जाने पर ।
-0-

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढ़िया!!सामयिक रचना है।

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सही लिखा है पानी का महत्व समझाती हुई बहुत सामयिक रचना है।बधाई।

एमाला said...

बच्चे निसंदेह फ़रिश्ता होते हैं.आपने बहुत अच्छा संसार रचा है.हमने भी अपने बच्चों के बहाने इन मासूमों के लिए एक दुनिया बनाने की कोशिश की है.आपका स्वागत है!