मेरा आँगन

मेरा आँगन

Thursday, May 20, 2010

यह बच्चा कैसा बच्चा है

इब्ने इंशा

यह बच्चा कैसा बच्चा है

यह बच्चा कालाकाला सा

यह काला सा मटियाला सा

यह बच्चा भूखाभूखा सा

यह बच्चा सूखासूखा सा

यह बच्चा किसका बच्चा है

जो रेत पे तन्हा बैठा है

न उसके पेट में रोटी है

न उसके तन पर कपड़ा है

ना उसके सिर पर टोपी है

ना उसके पैर में जूता है

ना उसके पास खिलौना है

कोई भालू है कोई घोड़ा है

ना उसका जी बहलाने को

कोई लोरी है कोई झूला है

न उसकी जेब में धेला है

ना उसके हाथ में पैसा है

ना उसके अम्मीअब्बू हैं

ना उसकी आपाखाला है

यह सारे जग में तन्हा है

यह बच्चा कैसा बच्चा है

यह सहरा कैसा सहरा है

न इस सहरा में बादल है

न इस सहरा में बरखा है

न इस सहरा में बोली है

न इस सहरा में खोशा है

न इस सहरा में सब्जा है

न इस सहरा में साया है

यह सहरा भूख का सहरा है

यह सहरा मौत का साया है

यह बच्चा कैसे बैठा है

यह बच्चा कब से बैठा है

यह बच्चा क्या कुछ पूछता है

यह बच्चा क्या कुछ कहता है

यह दुनिया कैसी दुनिया है

यह दुनिया किस की दुनिया है

इस दुनिया के कुछ टुकड़ों में

कहीं फूल खिले कहीं सब्जा है

कहीं बादल घिरघिर आते हैं

कहीं चश्मा है कहीं दरिया है

कहीं ऊँचे महल अटारियाँ है

कहीं महफिल है कहीं मेला है

कहीं कपड़ों के बाजार सजे

यह रेशम है यह दीबा है

यहीं गल्ले के अम्बार लगे

सब गेहूं, धन मुहय्या है

कहीं दौलत के संदूक भरे

हां तांबा, सोना, रूपा है

तुम जो माँगो सो हाजिर है

तुम जो चाहो सो मिलता है

इस भूख के दुख की दुनिया में

यह कैसा सुख का सपना है?

यह किस धरती के टुकड़े हैं?

यह किस दुनिया का हिस्सा है?

हम जिस आदम के बेटे हैं

यह उस आदम का बेटा है

यह आदम एक ही आदम है

यह गोरा है या काला है

यह ध्रती एक ही ध्रती है

यह दुनिया एक ही दुनिया है

सब इक दाता के बंदे हैं

सब बंदों का इक दाता है

कुछ पूरबपच्छिम फर्क नहीं

इस धरती पर हक सबका है

यह तन्हा बच्चा बेचारा

यह बच्चा जा यहाँ बैठा है

इस बच्चे की कहीं भूख मिटे

क्या मुश्किल है हो सकता है,

इस बच्चे को कहीं दूध मिले

हाँ दूध यहाँ बहुतेरा है,

इस बच्चे का कोई तन ढांके

क्या कपड़ों का यहाँ तोड़ा है?

इस बच्चे को कोई गोद में ले

इंसान जो अब तक जिंदा है,

फिर देखें कैसा बच्चा है

यह कितना प्यारा बच्चा है

इस जग में सब कुछ रब का है

जो रब का है, वो सब का है

सब अपने हैं कोई गैर नहीं

हर चीज में सबका साझा है

जो बढ़ता है, जो उगता है

यह दाना है, या मेवा है

जो कपड़ा है, जो कंबल है

जो चाँदी है, जो सोना है

वह सारा इस बच्चे का है

जो तेरा है, जो मेरा है

यह बच्चा किसका बच्चा है

यह बच्चा सबका बच्चा है

-00-

साभार : http://arvindguptatoys.com

Sunday, May 16, 2010

मैं हूँ आलू का पापड़

मैं हूँ आलू का पापड़

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

मैं हूँ आलू का पापड़। मैं छोटे-छोटे बीज के रूप में था। किसान ने खेत की जुताई करके मुझे जमीन में दबा दिया। मेरा दम घुटने लगा। मुझे लगा मेरे प्राण पखेरू उड़ जाएँगे। किसान ने सिंचाई की। मुझसे अंकुर निकलने लगे और ऊपर की कोमल जमीन को चीरकर खुली हवा में साँस लेने का मौका मिला। ठण्ड पड़ने लगी। लगा कि मेरे पत्ते सूख जाएँगे। किसान ने सिंचाई करके मुझे सूखने से बचाया। कुछ कीट-पंतगों ने भी मेरे स्वास्थ्य को खराब करने का बीड़ा उठाया। मेरा मालिक बहुत होशियार था। उसने कीटनाशक छिड़ककर मुझे होने वाली बीमारियों से छुटकारा दिला दिया। मैं धीरे-धीरे बड़ा होने लगा। जमीन के भीतर मेरा आकार बढ़ने लगा।

किसान ने खुदाई करके मुझे बाहर निकाल लिया। बाहर का संसार बहुत सुन्दर था। एक दिन एक हलवाई मुझे खरीदकर ले गया। उसने पहले मुझे बड़े-बड़े भगौनों में उबाला। फिर मेरा छिलका बड़ी बेरहमी से उतारा। मेरी आँखों में इस हलवाई ने नमक-मिर्च झोंक दीं, मसाला भी मिला दिया। मुझे बुरी तरह कुचलकर बेलन से बेला और पापड़ बनाए। वह मुझे इतनी जल्दी छोड़ने वाला नहीं था। उसने मुझे तेज धूप में डाल दिया। मैं रो भी नहीं सकता था। इसके बाद उसने मुझे खौलते तेल में डालकर तला। आलू से पापड़ बनने की यह मेरी कष्टकारी यात्रा थी। अब आपकी प्लेट में सजाया गया हूँ ।

-00-

Monday, May 10, 2010

हरियाली ने बौर सजाया

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
जन्म दिन वह याद है आया
पेड़ भेंट में मैंने पाया ।
आँगन में वह पेड़ लगाया
पानी उसको रोज पिलाया ।
पानी पीकर निकली डाली
डाली पर छाई हरियाली ।
हरियाली ने बौर सजाया
खुशबू से आँगन महकाया
आँगन में गाती मतवाली
कुहू -कुहू कर कोयल काली ।
महका बौर आम भी आए
हम सबने मिल-जुलकर खाए ।
-00-